रामू नाम का एक किसान है। शाम को खेत का काम खत्म करके जब वह अपनी झोपड़ी के पास पहुंचता है, तो उसे पीछे की तरफ अंधेरे में दो आंखें चमकती दिखाई देती हैं। वह बहुत डरा हुआ है। डर से काँपने लगता है। वह मन ही मन सोचता है कि शायद बाघ तो नहीं है। इतने में घनी झाड़ी से बाघ ही बाहर आता है और रामू किसान के सामने खड़ा हो जाता है। रामू पसीने से भीग जाता है।
बाघ उससे कहता है, "मैं पानी पीना चाहता हूँ।
मैं पास के जंगल से गांव आया हूं। मुझे बहुत प्यास लगी है। मुझे पानी पीने दो, मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"
वह झटपट झोंपड़ी के पीछे जाता है और साहसपूर्वक अपने कुएँ से पानी निकाल कर लाता है। पानी पी कर संतुष्ट होकर बाघ रामू को नुकसान पहुंचाए बिना जंगल के लिए निकल जाता है। जाते जाते, वह रामू से कहता है, "मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगा।" जैसे ही जीवन बच जाता है, रामू राहत की सांस लेता है, दोनों हाथ मिला कर भगवान को अभिवादन करता है।
दो दिन बाद, रामू अपनी पत्नी और छोटी बच्ची के साथ सुबह-सुबह खेत पर जाने के लिए निकलता है। खेत का रास्ता जंगल से होकर जाता है। रास्ते में एक भेड़िया अचानक छोटी बच्ची पर हमला कर देता है। रामू जोर से चिल्लाने लगता है और भेड़िये पर कुल्हाड़ी से हमला करने की कोशिश करता है। सौभाग्य से, पास के जंगल में बाघ अपने उपकारी रामू की आवाज को पहचान लेता है।वह तेजी से दौड़ता है और भेड़िये पर कूद पड़ता है।
घायल भेड़िया नीचे गिर जाता है और भाग जाता है। रामू, उसकी बेटी और पत्नी सभी सुरक्षित रहते हैं। बाघ बेटी की जान बचाकर एहसान चुका देता है। बाघ रामू को देखता है और जंगल में चला जाता है। आपही समझ लो की, एहसान चुकाने वाला जंगली बाघ दुष्ट है या बिना किसी कारण बाघ को मारने वाला मानव दृष्ट है। - रश्मी गुजराथी अनुवाद-मच्छिंद्र ऐनापुरे,सांगली
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