Tuesday, August 18, 2015

बालकथा : जादु के कंकड्

     इंदु एक छोटीशी कुटीया में मॉं के साथ रहती थी। इंदु की मॉं फुलों का हार-गजरा बनाकर बिकती थी और अपना घर चलाती थी। इंदु स्कूल जाती थी और मॉं के काम में हाथ बटाती थी। एक दिन इंदु की मॉं बिमार पड गई। इंदु ने उसे डाक्टर के पास ले गई। डाक्टर बोले, इन्हे सक्त आराम की जरुरत है। आँखों पर तान आनेवाला  कौन-सा भी काम करने नहीं देना और घर के बाहर भी जाने मत देना। डाक्टर ने दवाईयॉं लिखकर दी। मॉं और इंदु के सामने सवाल खडा हुआ, अब क्या  करें? पहले सेही  घर में गरिबी, उस में आराम और दवाओं का खर्चा. ये सब कैसे होगा?
       इंदु तो रो पडी। फिर मॉं  और भी  चिंता में पड जायेगी, इसलिए  वो  बाहर आ गई। एक पत्थर पर बैठकर रोने लगी। तभी सामनेवाले  पहाडी मंदिर में से घंटी  की आवाज उसके कानों पर पडी। वो झट से खडी हो गई और मंदिर के तरफ भागने लगी।
 ईश्‍वर के सामने हाथ जोडकर उसे सब हकीकत बताने लगी। ये ईश्‍वर, अभी तूही मेरी सहायता कर सकता है। तभी उसके पीट पर  किसी का  प्यार से  हाथ फिरने लगा। उसने पिछे मूडकर देखा, तो एक बुढी मॉं पिछे खडी थी। वो उसे कहने लगी, रो मत बेटी, मैं ने तेरी हकीकत सुन ली  है। पर तू तो काम कर सकती है और मेहनत कर के पैसे भी कमा सकती है।
      उस पर इंदु बोली, मैं तो छोटी हूं और स्कूल भी जाती हूं। फिर मैं कैसे काम कर पाऊंगी? बुढी मॉं ने इंदु को मंदीर में ही आसपास दिख ने वाली चिंटीयों को दिखाते हुए कहा, इन्ह चिंटीयों को देख! िकतनी छोटी हैं। फिर भी कितने  अनाज के  दाणे और फुटाणे ले जाती हैं। क्योंकी उनके पास विश्‍वास, जिद्द और मेहनत ये तिन्हों  चिजें हैं। इसलिए उन्हें शक्य होता है।
 पर बुढी मॉं, मुझ में तो  वो सारे गुण नहीं है, फिर मैं कैसे करुंगी?
 बुढी मॉं हंसी और इंदु को कहने लगी, ये देख, मेरे पास ये जादु के कंकड  हैं
      उन्हों ने मडके में से तीन पत्थर उठाए। और कहा,  इस में से एक पत्थर तुझे आत्मविश्‍वास दे गा। दुसरा जिद्द और तिसरा मेहनत करने की शक्ती दे गा। इन्हें सदा अपने पास रखना।
 पर मॉं कहती है, किसी के सामने हाथ फैलाना नहीं, इंदु ने कहा।
      उस पर बुढी मॉं कह ने लगी, सही है। पर ये तो पैसे-हिरें या सोना- चांदी का मामला  नहीं है। सिर्फ पत्थर हैं। फिर क्या हरकत है? और तुम्हारा काम खत्म होने पर और मॉं ठीक हो जाने पर मुझे वापस कर देना।
      इंदु को पट गया। उसने पत्त्थर ले लिए। बुढी मॉं को नमस्कार किया और घर लौट आयी। उसने मॉं को कुछ बताया नहीं। उसे डर था कि, मॉं गुस्सा करे गी। इंदु अब वो पत्त्थर हमेशा अपने पास रखने लगी। इंदु रात के समय हार-गजरें बनाने लगी। सबेरे जल्दी उठकर उसे बाजार में बेचने के लिए ले जाने लगी। स्कूल से आते समय फुल लाने लगी। रात में हार-गजरे बनाकर सबेरे बेचने लगी।  ये सब अभी अच्छी तरह से आने लगा। उसे अभी अच्छे पैसे मिलने लगे। उस में से कुछ पैसे अलग रखकर फुलों के बी खरीद लायी। घर के अंगण में बोई। कुछ दिनों बाद  पेड उग गये। उसे फुल आने लगे। अभी इंदु को बाजार से फुल लेने की जरुरत नहीं पडी। उसी पेड पर बी आये। वो भी उसने आँगन में बो दिये। उसे पैसे अधिक मिलने लगे। उस पैसों में से मॉं की दवा लाने लगी। मॉं ठीक  हो गई।
      एक दिन इंदु बहुतही अस्वस्थ थी। कुछ खोज रही थी। उसके जादू के पत्त्थर खो गये थे। मिल नहीं रहे थे। मॉं को पूछ नहीं सकती थी। वो रो पडी। इंदु मंदीर की तरफ भागने लगी। बुढी मॉं को देखते ही उसे लिपट पडी। और जोर जोर से रोने लगी। उसने सब हकिकत बताई। बुढी मॉं हंसने लगी। इंदु बुढी मॉं को देखने लगी और कहने लगी, मेरे पत्त्थर गुम हो गये और आप हंस रहें हैं। बुढी मॉं ने मडके से और पत्त्थर निकाले और कहने लगी, बेटी, ये सब साधे पत्त्थर हैं। जादू के नहीं। तेरे में तीन गुण थे, लेकिन तू उसे पहचान नहीं पा रही थी। मैं ने इसी के सहारे उसकी पहचान करा दी। उसका उपयोग तुझे हुआ।
      यह सुनकर इंदु को हंसी आयी। उसने पूछा, मतलब मैं ने यह सब मेरे हिंमत पर किया है। बुढी मॉं ने कहा, बेटी, तुम्हारे भीतर ये गुण अभी है, वो खोये नहीं।
 इंदु ने बुढी मॉम से फिर से लिपट पडी। और उनसे कहा, थॉंकू, बुढी मॉं!  (अनुवादीत कथा)
                                                                                                  
 

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